गीत (पथ पर कंटक)
गीत(पथ पर कंटक)
पथ पर कंटक बिछे हुए हैं,
कष्टित लगता जग सारा।
दुख का पारावार नहीं है,
थम सी गई अश्रु-धारा।।
योग-वियोग-केंद्र जीवन है,
मात्र मूल आना-जाना।
आज यहाँ के वासी हम हैं,
कल इसको मुश्किल पाना।
होता दुखद पिता का जाना,
तज सुत को बिना सहारा।।
थम सी गई अश्रु-धारा।।
कहीं रुदन करती ममता है,
कहीं प्यार शृंगार तजे।
कहीं धुले लज्जा सिंदूरी,
देख जिसे दुख करे मजे।
पदे-पदे ले समय परीक्षा,
मधु फल दुर्लभ नभ-तारा।।
थम सी गई अश्रु-धारा।।
फलना-पकना,पकना-झड़ना,
बिना पके भी झड़ना है।
अद्भुत लीला है जीवन की,
इसमें निश्चित पड़ना है।
इस लीला का अंत दुखद है,
नीर भरा इसमें खारा।।
थम सी गई अश्रु-धारा।।
सच्चाई से जीवन जीना,
होता बहुत कठिन प्यारे।
झूठ लिए हाथों में लाठी,
सदा सत्यता को मारे।
पर सच्चाई जीवित रहती,
कभी नहीं सच्चा हारा।।
थम सी गई अश्रु-धारा।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
03-Mar-2023 07:12 PM
बहुत खूब
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shahil khan
03-Mar-2023 05:07 PM
nice
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Vishal Ramawat
03-Mar-2023 04:33 PM
nice
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